गेहूं में यूरिया देने का सही तरीका डॉ. सांगवान ढिगावा में किसानों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि सरसों में तीन बार तथा गेहूं में तीन बार छिड़काव करना चाहिए। सरसों में पहली सिंचाई बुआई के 45 दिन बाद करनी चाहिए, जिसमें प्रति एकड़ 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया और आधा किलो जिंक का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इस घोल का सरसों पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव 45 दिन बाद तथा दूसरा छिड़काव 20 दिन बाद करना चाहिए।
फलों के पौधों में उर्वरक डालने की मात्रा एवं समय:-
जब पौधे 1-3 वर्ष के हो जाएं तो 10-40 कि.ग्रा. हर साल प्रति पौधा गोबर की खाद, 200-600 ग्राम यूरिया, 250-750 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें। 4 से 6 वर्ष पुराने वृक्षों में 40-70 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 750-1250 ग्राम यूरिया, 1000-1500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाएं। जब पेड़ 7 वर्ष या उससे अधिक पुराना हो तो 100 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 1500 ग्राम यूरिया 2 किग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट और 175 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाएं।
- दिसंबर के अंत में गोबर की खाद, सिंगल सुपर फॉस्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें।
- आधा यूरिया फरवरी के मध्य में तथा शेष आधा अप्रैल माह में डालकर सिंचाई करें।
- मई-जून और फिर अगस्त-सितंबर माह में 5 ग्राम प्रति लीटर जिंक सल्फेट और 10 ग्राम प्रति लीटर यूरिया का घोल बनाकर पौधों पर छिड़कें.
गेहूं में यूरिया का प्रयोग पानी देने से पहले या बाद में करें।
यदि आपने हल्की मिट्टी में गेहूं की फसल लगाई है तो आपको पानी देने से पहले यूरिया का उपयोग करना चाहिए ताकि पानी देने के बाद यूरिया पानी में अच्छी तरह से घुल जाए और पौधे की जड़ों तक पहुंच जाए।
भारी मिट्टी में, कई किसान सिंचाई के बाद यूरिया का उपयोग करते हैं। हमारे अनुसार यूरिया का प्रयोग पानी देने से पहले करना चाहिए ताकि यूरिया पानी में अच्छी तरह घुल जाए और पौधे की जड़ों तक पहुंच जाए। इस प्रकार यदि आप गेहूं में यूरिया का उपयोग करते हैं तो किसान भाई आपको 100% यूरिया का परिणाम मिलेगा।
इसी प्रकार गेहूं में पहली सिंचाई 60 दिन बाद करनी चाहिए, जिसमें 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया के साथ आधा किलो जिंक का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। गेहूं की फसल में पहला छिड़काव बुआई के 60 दिन बाद, दूसरा छिड़काव 20 दिन बाद और तीसरा छिड़काव 15 दिन बाद करना चाहिए. इस विधि का प्रयोग लगातार 2-3 वर्ष तक करने से बिना उर्वरक के भी धीरे-धीरे फसल उगाई जा सकती है। जहां किसान को डीएपी और यूरिया के रूप में प्रति एकड़ 2 से 3 हजार रुपये और ट्रैक्टर के लिए 1 हजार रुपये अतिरिक्त देने पड़ते हैं.